Vindhyachal Mandir: विंध्याचल मंदिर का इतिहास, रहस्य आरती और यात्रा की जानकारी

vindhyachal mandir

पवित्र गंगा के तट पर स्थित, विन्ध्याचल मंदिर भारत के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है। यह मंदिर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में, वाराणसी से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसे देवी दुर्गा का निवास स्थान माना गया है। इस क्षेत्र में कई अन्य महत्वपूर्ण मंदिर जैसे अष्टभुजा देवी मंदिर और काली कोह मंदिर भी स्थित हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, राक्षस महिषासुर पर विजय प्राप्त करने के बाद, देवी दुर्गा ने इस स्थान को अपना स्थायी निवास बनाया। यही कारण है कि यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत पवित्र और पूजनीय है। विन्ध्याचल मंदिर विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान भक्तों की भारी भीड़ को आकर्षित करता है। इन दिनों पूरे शहर को रोशनी और फूलों से भव्य रूप से सजाया जाता है। भक्तगण देवी मां के दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से यहां आते हैं।

यह मंदिर देवी विंध्यवासिनी को समर्पित है और इसे हिंदू धर्म की नौ देवियों और 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। विन्ध्याचल पर्वत पर स्थित यह पवित्र धाम चारों दिशाओं में अपनी प्रसिद्धि के लिए जाना जाता है। इसके अलावा, इस मंदिर के आसपास कई अन्य दर्शनीय स्थल हैं, जो इसे धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बनाते हैं। अगर आप विन्ध्याचल की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो इन पवित्र स्थलों का दर्शन अवश्य करें।

विंध्याचल मंदिर का इतिहास – vindhyachal mandir History In Hindi

यह क्षेत्र प्राचीन ग्रंथों और धार्मिक मान्यताओं में एक विशेष स्थान रखता है। विन्ध्याचल का उल्लेख महाभारत, स्कंद पुराण, देवी भागवत, और मार्कंडेय पुराण जैसे अनेक पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। देवी विन्ध्यवासिनी को महिषासुर मर्दिनी के रूप में जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने दुष्ट राक्षस महिषासुर का वध यहीं किया था। यह घटना शक्ति की विजय और धर्म की स्थापना का प्रतीक है। दुर्गा पूजा के दौरान देवी दुर्गा के इस रूप की पूजा की जाती है, जो इस महान युद्ध और देवी की महिमा की याद दिलाती है।

विन्ध्याचल का नाम संस्कृत शब्दों “विन्ध्य” और “अचल” से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है “विन्ध्य पर्वत।” देवी विन्ध्यवासिनी का नाम इस पर्वत पर उनके निवास का प्रतीक है। प्राचीन समय में, विन्ध्याचल मंदिर के आसपास हजारों मंदिर और शक्ति उपासना स्थल मौजूद थे। लेकिन मुगल शासक औरंगज़ेब के काल में इनमें से कई स्थानों को नष्ट कर दिया गया। इसके बावजूद, विन्ध्यवासिनी मंदिर आज भी शक्ति उपासना का प्रमुख केंद्र है।

यह स्थान अपनी विशिष्टता के लिए प्रसिद्ध है। यह एकमात्र ऐसा स्थल है, जहां देवी के तीन रूप—लक्ष्मी, काली, और सरस्वती—के मंदिर त्रिकोण के रूप में स्थापित हैं। इसे “त्रिकोन शक्ति स्थल” कहा जाता है, जो एक अत्यंत आध्यात्मिक और ऊर्जावान क्षेत्र बनाता है। हालांकि, देवी विन्ध्यवासिनी की मूर्ति प्राचीन है, मंदिर का वर्तमान ढांचा समय के साथ नवनिर्मित हुआ है। यह क्षेत्र अब एक आधुनिक नगर का रूप ले चुका है, लेकिन इसकी आध्यात्मिक महत्ता आज भी उतनी ही गहरी है।

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विंध्याचल मंदिर का समय – vindhyachal mandir time

  • विंध्याचल मंदिर खुलने का समय – vindhyachal mandir khulne ka samay

विंध्याचल मंदिर सुबह 5:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक और शाम को 1:30 से 7:15 बजे तक और रात में 8:15 बजे से 10:30 बजे तक खुला रहता है।

  • विंध्याचल मंदिर बंद होने का समय – vindhyachal mandir band hone ka samay

विंध्याचल मंदिर 10:30 बजे के बाद बंदिर के द्वार श्रद्धालु के लिए बंध हो जाता है।

  • विंध्याचल मंदिर आरती का समय -vindhyachal mandir aarti timings

विंध्याचल मंदिर में दिन में चार बार आरती होते है।

  1. सुबह 3 से 4 बजे तक मंगला आरती
  2. दोपहर 12 से 1 बजे तक मध्याह्न आरती
  3. शाम 7 से 8 बजे तक सांध्य आरती
  4. रात 9.30 से 10.30 बजे तक राजश्री आरती

विंध्याचल मंदिर का रहस्य – vindhyachal mandir ka rahasya

• वर्तमान भारतीय मानक समय रेखा जो संपूर्ण भारत का समय क्षेत्र तय करती है। देवी विंध्यवासिनी की मूर्ति से होकर गुजरती है।

• भगवान राम ने अपने वनवास काल में पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ इस स्थान और आसपास के क्षेत्रों का दौरा किया था।

• प्राचीन काल में विंध्याचल क्षेत्र में सिंह, हाथी तथा अन्य जानवर निवास करते थे।

• मध्य युग में कुख्यात और हत्यारे पिंडारी ठग, हिंदू और मुस्लिम, विंध्याचल की देवी ‘विंध्यवासिनी’ की पूजा करते थे।

• विंध्याचल दुनिया का एकमात्र स्थान है जहां देवी के तीनों स्वरूपों लक्ष्मी, काली और सरस्वती को समर्पित विशिष्ट मंदिर हैं।

• vindhyachal mandir दुनिया का एकमात्र स्थान है। जहां देवी की पूजा, वाम मार्ग के सिद्धांतों के साथ-साथ हिंदू धर्म के शक्ति पंथ के दक्षिण मार्ग के अनुसार की जाती है।

• देवी दुर्गा और राक्षस राजा महिषासुर के बीच बहुत प्रसिद्ध युद्ध विंध्याचल में हुआ था।

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विंध्याचल मंदिर के आस-पास घूमने की जगह

1. कंकाली देवी मंदिर

विंध्यवासिनी मंदिर से लगभग 2-3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस गुफा मंदिर में देवी महाकाली की पूजा होती है। यह मंदिर अष्टभुजा मंदिर के पास स्थित है। कंकाली देवी मंदिर का नाम “कंकाल” शब्द से प्रेरित है, जिसका अर्थ है “हड्डियों का ढांचा” या मां काली। मान्यता है कि देवी दुर्गा ने राक्षसों का नाश करने के लिए काली का रूप धारण किया था और दुष्टों का अंत किया था।

2. रामगया घाट 

रामगया घाट विंध्याचल से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस स्थान पर माना जाता है कि भगवान राम ने अपने माता-पिता की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की थी।

3. अष्टभुजा मंदिर 

अष्टभुजा मंदिर, विंध्यवासिनी मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह पवित्र स्थान एक पहाड़ी की चोटी पर बना हुआ है। इस मंदिर में अष्टभुजा देवी की पूजा की जाती है, जिन्हें देवी दुर्गा का एक रूप माना जाता है।

4. सीता कुंड 

सीता कुंड वह स्थान है जहां वनवास के दौरान श्री लक्ष्मण ने माता सीता की प्यास बुझाने के लिए अपने बाण से जमीन को छेदा था। इस स्थान से जल प्राप्त हुआ था और माता सीता ने उस जल से अपने गले की प्यास बुझाई थी।

5. काली खोह मंदिर 

जो देवी काली को समर्पित है एक गुफा के रूप में निर्मित किया गया है। माना जाता है कि देवी काली का अवतार राक्षस रक्तबीज को मारने के लिए हुआ था।

6. रामेश्वर महादेव मंदिर 

रामेश्‍वर घाट पर स्थित रामेश्‍वर महादेव मंदिर जो मिर्ज़ापुर से लगभग 8 किमी की दूरी पर एक प्राचीन स्थल है। यहाँ से विंध्यवासिनी देवी मंदिर केवल एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। प्राचीन किंवदंतियों के अनुसार इस मंदिर में भगवान राम द्वारा स्थापित शिवलिंग है।

निष्कर्ष:

आज के लेख में आपको विंध्याचल मंदिर के बारे में बताया। अगर vindhyachal mandir लेख पसंद आया हो तो अपने दोस्तो के साथ शेयर जरूर करे।

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