Kedarnath Mandir:केदारनाथ मंदिर का रहस्य, इतिहास और यात्रा की जानकारी

नमस्ते दोस्तों आज मैं आपको Kedarnath Mandir के बारे में बताऊँगा। यह मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में मंदाकनी नदी के किनारे स्थित है और शिव भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है। इसे हिमालय की निचली पर्वत श्रंखला और घाटी के बीच में बना हुआ माना जाता है। मंदिर के कपाट मेष संक्रांति के 15 दिन बाद खुलते हैं और अघन्य संक्रांति के बाद बल राज की रात को पूजा की जाती है। हर वर्ष भय्या दूज को सुबह को केदार जी की पूजा करके उनको घ्रतकमल और कपड़ों में लपेट कर मंदिर के दरवाजों को बंद किया जाता है। मंदिर को बंद करने के बाद श्री केदार की पंच मुखी प्रतिमा को उखीमथ लाया जाता है और कपाट खुलने तक प्रतिदिन यहाँ पर इस प्रतिमा की पूजा की जाती है।

केदारनाथ मंदिर का इतिहास – Kedarnath Mandir History

हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार केदारनाथ मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पहले तक पहुँचता है। महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने भ्रातृहत्या पाप से मुक्ति प्राप्त करने और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने के बाद इस स्थान पर मंदिर की नींव रखी थी। जिसे हम Kedarnath Mandir के नाम से जानते हैं। यह मंदिर बहुत समय तक अपनी मूल स्थिति में बना रहा है और इसकी खोज आदि शंकराचार्य ने 8 वीं शताब्दी में की थी। मंदिर का वर्तमान स्वरूप उनके द्वारा ही निर्मित किया गया है और यह एक प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

धकेदारनाथ मंदिर का धार्मिक इतिहास

केदारनाथ मंदिर की कहानी धार्मिक ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में वर्णित है। महाभारत युद्ध के बाद पांडवों पर भ्रातृहत्या का पाप लगा था। इस पाप से मुक्ति प्राप्त करने के लिए पांडवों ने भगवान शिव से प्रार्थना की लेकिन भगवान शिव ने इसे आसानी से माफ नहीं किया। इसके बजाय उन्होंने बैल के रूप में हिमालय की पहाड़ियों में छुप जाने का रूप धारण किया ताकि कोई उन्हें पहचान न सके।

पांडव भगवान शिव की खोज में रहते हुए उन बैलों के झुंड के पास पहुँचे। जब पांडवों को उस झुंड पर संदेह हुआ तो भीम ने अपना विशाल रूप धारण करके दोनों पहाड़ियों पर पैर फैलाए जिससे सभी गाय-बैल भीम के पैरों से निकल गए। तथापि भगवान शिव को बैल रूप में भीम के पैरों के नीचे से निकलने की अनुमति नहीं थी। भीम ने इसे देखकर भी संदेह किया और जब वह उस बैल को पकड़ने की कोशिश की तो बैल धरती में समा गया। तेजी से भीम ने उस बैल के पीठ पर बने कूबड़ को पकड़ लिया।

पांडवों की वास्तविक भक्ति को देखकर भगवान शिव उन पर प्रसन्न हो गए और उन्हें दर्शन देकर उन्हें उस पाप से मुक्त कर दिया। उसी दिन से भगवान शिव को बैल की पीठ पर बने कूबड़ के आकार में श्री केदारनाथ धाम में पूजा जाता है। केदारनाथ धाम भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

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केदारनाथ मंदिर की वास्तुकला

केदारनाथ मंदिर को कत्युरी शैली में निर्मित किया गया है। इस मंदिर का मुख्य भाग में मंडप और गर्भगृह होता है जो 6 फीट ऊचे चौकोर चबूतरे पर स्थित है। सीढ़ियों का निर्माण मंदिर तक पहुँचने के लिए किया गया है और उसके चारों ओर एक प्रदक्षिणा पथ है। Kedarnath Mandir के गर्भगृह में एक नकुली चट्टान स्थित है जो सदाशिव के रूप में पूजी जाती है।

मंदिर के बाहर भगवान शिव जी के वाहन के रूप में स्थित नंदी बैल है। इस मंदिर के प्रागण में द्रोपदी सहित पांच पांडवों की विशाल मूर्ति भी हैं। केदारनाथ मंदिर की मुख्य मंदिर की ऊचाई 85 फीट, चौड़ाई 187 फीट और दीवारों की मोटाई 12 फीट है। इस मंदिर को बड़े पत्थरों से बनाया गया है। जिन्हें समान रूप से तराशा गया है। इस मंदिर की समुद्र तल से ऊचाई लगभग 3582 मीटर है और यह तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है।

केदारनाथ मंदिर खुलने का समय

केदारनाथ मंदिर सालभर में केवल छह महीने तक ही खुलता है। यह गर्मी के महीनों में मई से शुरू होकर सर्दियों की प्रारंभिक दिनों में अक्टूबर तक खुला रहता है।

केदारनाथ मंदिर मंदिर खुलने और बंद होने का समय

Kedarnath Mandir का खुलने का समय – सुबह 3:00 बजे है। सुबह की आरती का समय – सुबह 4:00 बजे है। शाम की आरती का समय – शाम 4:00 बजे है। मंदिर का बंद होने का समय – रात्रि 10:00 बजे है। यह मंदिर दिन में दोपहर 3 बजे से शाम 5 बजे तक 2 घंटे के लिए बंद रहता है।

जकेदारनाथ मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय

केदारनाथ मंदिर सालभर में केवल 6 महीने के लिए ही खुलता है। सबसे अच्छा समय इसे देखने के लिए अगस्त के अंतिम सप्ताह और सितंबर के महीने में होता है। Kedarnath Mandir मई महीने में खुलता है। लेकिन बरसात के कारण जून और जुलाई के महीने में प्राकृतिक आपदाओं का अधिक खतरा रहता है। मंदिर के खुलने के समय शुरुवात में यहाँ अधिक भीड़ रहती है, लेकिन सितंबर महीने में यहाँ भीड़ कम होती है और मौसम भी अच्छा रहता है। इसलिए आप इस समय में मंदिर के दर्शन को आसानी से और बहुत अच्छे तरीके से कर सकते हैं।

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केदारनाथ मंदिर के आसपास के दर्शनीय स्थल

1) त्रियुगीनारायण मंदिर

रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ स्थल है। जो सुरम्य गांव में स्थित है। इस मंदिर की समुद्र तल से ऊचाई 1980 मीटर है और यहाँ से आप गढ़वाल क्षेत्र के बर्फ से ढके सुंदर पहाड़ों का दृश्य कर सकते हैं। त्रियुगीनारायण का मंदिर यहाँ का सबसे बड़ा आकर्षण है। जो भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर की वास्तुकला बद्रीनाथ मंदिर के समान है और यह केदारनाथ मंदिर से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

2) ऊखीमठ

रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है और समुद्र तल से 1317 मीटर की ऊचाई पर स्थित है। यह सर्दियों के समय में भगवान केदारनाथ का आधिकारिक आसन है। जब केदारनाथ का मंदिर सर्दियों में बंद होता है। तो श्री केदार जी की पूजा-आराधना ऊखीमठ मंदिर में ही की जाती है। ऊखीमठ में प्रमुख रूप से रावल लोग रहते हैं जो केदारनाथ के मुख्य पुजारी हैं। यहाँ से आप हिमालय श्रृंखला की बर्फ से ढकी चोटियों का आनंद उठा सकते हैं। Kedarnath Mandir से इस मंदिर की दूरी लगभग 25 किलोमीटर है।

3) चोपटा

एक शानदार हिल स्टेशन उत्तराखंड का मिनी स्विट्जरलैंड कहलाता है। यहाँ का वातावरण बहुत ही शांत है। अगर आप शहर की शोरगुल से परेशान हो गए हैं तो आपको एक बार इस हिल स्टेशन में जरूर आना चाहिए। यहाँ का सुबह का दृश्य जब सूरज की लाल किरणें बर्फ से लदी हिमालय की चोटियों में पड़ती हैं बहुत आनंदित करता है। केदारनाथ से  करीबन 43 किमी दूर चोपड़ा स्थित है।

4) तुंगनाथ

चंद्रनाथ पर्वत पर स्थित दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है। यह उत्तराखंड में स्थित पंच केदार मंदिरों में से एक है और इसकी ऊचाई समुद्र तल से लगभग 3680 मीटर है। यह मंदिर 1000 वर्ष से भी अधिक पुराना माना जाता है और केदारनाथ मंदिर से इसकी दूरी लगभग 31 किलोमीटर है।

5) वासुकी ताल झील

उत्तराखंड के Kedarnath Mandir से भी ऊपर स्थित एक उच्च हिमनद झील है। इसकी ऊचाई समुद्र तल से लगभग 4328 मीटर है। यह झील ब्रह्म कमल के लिए प्रसिद्ध है और यहाँ दुनियाँ के सबसे दुर्लभ प्रजाति के ब्रह्म कमल पाए जाते हैं। इस झील में ब्रह्म कमल के अलावा और भी हिमालयी फूल देखने को मिलते हैं।

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6) पंच केदार

भगवान शिव को समर्पित पाँच मंदिरों का एक समूह है। जिसे पंच केदार कहा जाता है। महाभारत के युद्ध के बाद जब पांडव भगवान शिव के पास क्षमा याचना के लिए आए तो भगवान शिव उन्हें माफ नहीं करना चाहते थे। पांडवों से बचने के लिए उन्होंने एक बैल का रूप धारण कर लिया था।

बाद में जब पांडवों ने उनको पहचान कर पकड़ लिया तो उनके शरीर के अंग अलग-अलग स्थानों पर गिरे थे। जिसे वर्तमान में पंच केदार के नाम से जाना जाता है। केदारनाथ में उनका कूबड़ प्रकट हुआ, तुंगनाथ में भुजाएँ प्रकट हुईं, मध्यमहेश्वर में नाभि प्रकट हुई। रुद्रनाथ में चेहरा और कल्पेश्वर में सिर और बाल प्रकट हुए इसलिए यह सभी स्थानों पर पांडवों ने मंदिरो का निर्माण करवाए।

केदारनाथ मंदिर की आपदा

2013 में उत्तराखंड में बाढ़ आई थी। जिससे केदारनाथ में बहुत अधिक नुकसान हुआ था। इस बाढ़ की मुख्य वजह थी कि मंदिर के ऊपर बनी झील फट गई थी। झील के टूटने से पानी तेज गति से नीचे आया और Kedarnath Mandir के आसपास के सभी घर मकान और होटल को तबाह कर दिया गया था। लेकिन मंदिर में कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ बल्कि कुछ हल्की सी दरारें हो गई थीं। बाढ़ का पानी आगे बढ़कर अलकनंदा में मिल गया और उसने भी बहुत नुकसान मचाया। 

निष्कर्ष

आशा है कि मैंने आपको Kedarnath Mandir के संबंधित पूरी जानकारी प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। किसी ओर मंदिर की जानकारी के लिए हमें कमेंट करें और अपने दोस्तों या आस-पास के लोगों के साथ हमारा पोस्ट साझा करने में मदद करें। हम आपके कीमती समय के लिए कृतज्ञ हैं।

2 thoughts on “Kedarnath Mandir:केदारनाथ मंदिर का रहस्य, इतिहास और यात्रा की जानकारी”

  1. आपके पोस्ट के माध्यम से केदारनाथ मंदिर के रहस्य को जानकर बहुत अच्छा लगा । ऐसे ही पोस्ट लिखते रहें और हम सभी को भगवान की भक्ती दर्शन कराते रहें । धन्यवाद

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  2. Nice and deep information about Kedarnath Mandir. Please write in deatil about the disasters and Pralay in the history of the mandir since 8th century.

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