kumbh mela prayagraj : महाकुंभ में हर दिन लाखों श्रद्धालु पवित्र स्नान के लिए पहुंच रहे हैं, जो आस्था और धर्म का प्रतीक है। हिंदू धर्म में महाकुंभ का खास महत्व है, जो सनातन परंपरा की गहराई को दर्शाता है। हर 12 साल में कुंभ मेला होता है, जिसे पूर्ण कुंभ कहा जाता है, और 12 पूर्ण कुंभ के बाद महाकुंभ आयोजित होता है। इस बार महाकुंभ 144 वर्षों के बाद हो रहा है। मेले में शाही स्नान की भी व्यवस्था है, जिसके लिए विशेष तिथियां तय की गई हैं। इस महाकुंभ में कुल 6 शाही स्नान हैं, जिनमें से 2 पूरे हो चुके हैं और शेष 4 शाही स्नानों की तिथियां और मेले के समापन के बारे में जाने।
महाकुंभ 2025 शाही स्नान की तिथियां और तारीख
1. पौष पूर्णिमा: 13-01-2025, सोमवार
2. मकर संक्रांति: 14-01-2025, मंगलवार
3. मौनी अमावस्या (सोमवती): 29-01-2025, बुधवार
4. बसंत पंचमी: 03-02-2025, सोमवार
5. माघी पूर्णिमा: 12-02-2025, बुधवार
6. महाशिवरात्रि: 26-02-2025, बुधवार
संपन्न हो चुके हैं ये दो शाही स्नान
महाकुंभ का शुभारंभ 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा के दिन हुआ। पहला शाही स्नान पौष पूर्णिमा और दूसरा मकर संक्रांति पर संपन्न हुआ। अब मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी, माघी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के शाही स्नान बाकी हैं।
महाकुंभ 2025 का आखिरी अमृत स्नान
महाकुंभ का अंतिम अमृत स्नान बसंत पंचमी के अवसर पर होगा। यह पर्व मां सरस्वती को समर्पित है और इस दिन स्नान, दान और मां शारदा की पूजा अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस वर्ष बसंत पंचमी 2 फरवरी को है, जब महाकुंभ का अंतिम अमृत स्नान आयोजित होगा।
अगला महाकुंभ कब लगेगा? – prayagraj kumbh mela
यह कहा जा रहा है कि अगला महाकुंभ 2169 में प्रयागराज में आयोजित होगा। महाकुंभ का आयोजन हर 12 साल के अंतराल पर होता है, जो इसे धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण बनाता है। इस बीच, हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज में कुंभ, अर्धकुंभ और पूर्ण कुंभ का आयोजन होता रहेगा। अगला कुंभ 2027 में नासिक में, 2028 में उज्जैन में सिंहस्थ महाकुंभ, और 2030 में प्रयागराज में अर्धकुंभ होगा।
कुंभ मेला का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
कुंभ मेले का मुख्य उद्देश्य श्रद्धालुओं को आत्मशुद्धि का अवसर प्रदान करना है। ऐसी मान्यता है कि गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान करने से पापों का अंत होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह मेला साधु-संतों, गुरुओं और भक्तों के संगम का प्रमुख केंद्र है, जहां भक्ति, ज्ञान और सेवा का आदान-प्रदान होता है। ध्यान और आस्था के लिए यह मेला अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
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साधु-संन्यासियों के लिए महाकुंभ का महत्व
महाकुंभ साधु-संन्यासियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। शास्त्रों के अनुसार, महाकुंभ में स्नान का पुण्य 1000 अश्वमेध यज्ञ के बराबर माना जाता है। इस पावन अवसर पर साधु-संत प्रभु का ध्यान करते हैं और अपने मोक्ष की प्राप्ति के लिए कुंभ में स्नान करते हैं।
कुंभ मेला हर 12 साल में क्यों लगता है?
maha kumbh mela का आयोजन खगोलीय घटनाओं पर आधारित होता है। जब बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मकर राशि में होता है, तब यह मेला आयोजित किया जाता है। चूंकि बृहस्पति को अपनी कक्षा पूरी करने में 12 साल लगते हैं, इसलिए कुंभ मेला भी हर 12 साल में एक बार होता है। हिंदू ज्योतिष के अनुसार, 12 राशियों में बृहस्पति और सूर्य के विशेष संयोग पर यह मेला संपन्न होता है।